वफादारी का सम्मान
बरगद की वो विशाल शाखा..…...
जो कभी उस वृक्ष की शोभा बढ़ाती थी
जिसके वक्षों में कभी गिलहरियों की विशाल सेना निवास करती थी
जो कभी प्रवासी पक्षियों के विश्राम के लिए एक धर्मशाला था
जिसकी गोद मे कभी नीलकंठो ने अपने शिशुओं को पाला था।
बरगद की वो विशाल शाखा..…...
जो भूतल और गगन के बीच किसी बलखाती हुई यान की भांति हवा में गोते लगाती थी
जिसकी उपशाखाओं की सहस्त्र पत्तियों ने तुफानो से युद्ध कर वृक्ष के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे,
वो शहीद हुई पत्तियां मिट्टी में दफन हो आज भी उस वृक्ष के जड़ो को पोषण दे रही है।
बरगद की वो विशाल शाखा..…...
जिसकी छांव, तपती गर्मी में मुसाफिरों के लिए किसी संजीवनी से कम ना था
जिसकी शीतल छांव को ढाल बनाकर राही सूरज की प्रचंड नुकीली बाणों का घमंड चूर कर देता था और इस युद्ध स्थल में भी राही चैन की नींद सो जाता था।
बरगद की वो विशाल शाखा.... आज टूट चुकी है।
या यूं कहें कि उसे तोड़ा गया है।
पर किसने!
एक दिन एक कपटी चक्रवात आई थी
जाने क्या बरगद के कानो में उसने कौन से मंतर फूंके!
जाने क्या पाठ पढ़ाया!
ना जाने क्या भड़काया!
की बरगद ने बिना सोचें एक ही पल में चक्रवात के साथ साजिश कर उस विशाल शाखा को नीचे गिरा दिया।
बरगद की वो विशाल शाखा आज ज़मीन पर बेजान औन्धे मुँह पड़ा हुआ है। और धरती उस मृत शाखा को अपने सीने से लगाकर स्तब्ध होकर ऐसे लिपटी हुई है जैसे युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए अपने पुत्र के शव से गर्व से लिपटी माँ, जिसके हृदय में दुखों का वज्रपात हुआ हो। क्योंकि धरती को उसके वफादारी पर तनिक भी संदेह नही, उसे मालूम है कौन सही है और कौन गलत। अनन्त काल से यह धरती सब कुछ देख रही है। जब खुद वहाँ बरगद का वृक्ष ना हुआ करता था तब भी ये धरती वहीं थी और जब भविष्य में वह बरगद का वृक्ष वहां ना होगा तब भी ये धरती वहीं रहेगी।
आज उस धरती पर उगने वाले तिनके, जिनके पूर्वज सदियों से धरती का श्रृंगार करते आए हैं! वे उस शाखा के इर्द गिर्द घेरा बनाकर उस शाखा को श्रद्धांजलि अर्पण कर उसे उसकी वफादारी का सम्मान दे रही है।
आज उस टूटी हुई शाखा में वल्लरियों ने हरियाली की परत चढ़ाकर शाखा के प्रति अपना सम्मान प्रकट किया है।
शैवालों और मशरूमों ने भी वृक्ष की तरफ ना जाकर उस शहादती शाखा के तरफ अपना रुख मोड़ लिया है।
आज उस विशाल शाखा की आत्मा यह सब देख गर्व से पुलकित हो रही है कि उसे अपनी वफादारी का सम्मान मिल चुका है।
उधर चक्रवात अब दूसरे शाखाओं को तोड़कर बरगद को ठूंठ करने की सफल योजना बना रही है। और ताज्जुब की बात यह है कि चक्रवात की साजिश से बेख़बर बरगद, खुद को मिटाने की रणनीति में उसके साथ खड़ा हुआ है।
🖋️भीम
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