राष्ट्र चरित्र



हे नवराष्ट्र के नव निर्माता, किसे सुनाऊ अपना गाथा।
अन्तर्मन की करुण वेदना, आज पुत्र क्यों समझ न पाता।

ये तेरा एक दौर है, वो उसका एक दौर था।
मेरे अतीत के पुत्रों का राष्ट्र चरित्र कुछ और था।

रामकृष्ण की इस धरा को, बुध्द वीर की वसुंधरा को।
कर अपमानित हांस रहा है, क्यों नग्न होकर नाच रहा है?

कर मलिन स्वचरित्र तूने, मर्यादाओं को तोड़ लिया धर्म सनातन अपना भूल, पश्चिम से नाता जोड़ लिया।

ऐसी क्या मजबूरी है, क्या शौक चढ़ा आधुनिकता का।
भूल संस्कार अपने ही घर की, परिचय दे रहे नीचता का।

कर स्मरण अतीत तू अपने जब,,,,,,
ज्ञान में विज्ञान में, संस्कृति संस्कार में।
तीज में त्योहार में, ब्रम्हांड के विस्तार में।
अध्यात्म के प्रसार में, आयुर्वेद के संधान में।

थाम उंगली जब विश्व चला था, भारत के तत्वाधान में।

अभी समय है कर्मयोगी तू, साबित कर खुद को शान से।
आधुनिकता की राह पकड़, नित कर विकास जी जान से।

है आस लिए धरती तेरी, व्याकुल पाने को वही सम्मान।
फिर राह दिखाए सकल विश्व को, बना तू ऐसा हिंदुस्तान।

📖🖋भीम ✍

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