नव आलोक
माटीपूत के रुंध कंठ से, सुन पुकार रवि आया है।
नव आलोकित स्वर्णज्योति से पुनः धरा को सजाया है।
मृदु आलोक नवजात शिशु सा, आज कर रहा मातृ आलिंगन।
शिशु प्राप्त कर अद्भुत ममता, माता कर रही पुत्र वात्सल्यन।
किन्तु निगोड़े पवन बह बहकर, मेघों को फिर साथ ले आता।
लुका छिपी की क्रीडा कर कर, मेंघ इतराता शिशु रुलाता।
किन्तु शिशु आलोक का मन, तड़प रहा पाने को यौवन।
मातृचरण में शीश नवा कर, माटीपुत्र को दिया वचन।
माँ भारती के वीर सपूतों, ग्लानि ना कर विफलताओं का।
कल आऊंगा आलोक लाऊंगा, सुखद समृद्धि सफलताओं का।
📖🖋भीम ✍

बहुत अच्छा,,,जय हिंद
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