मैं असफ़ल हूँ



जीता हूँ ना आज यहाँ ना आने वाला सुखद कल हूँ
हर पग हर पथ हर पल बस हारा मैं इंसान वही असफ़ल हूँ।
ऐसा नही की आँखों में मेरे सपने न थे!
और ऐसा भी नही की उन सपनों में जान न थी
शायद कोई चूक हुई थी मुझसे जीवन को लेकर
या शायद मुझे जीवन की पहचान न थी।
निराशाओं की अनवरत बाणों से मेरे हिम्मत के ढालो का ढेर हुआ
मंजिल पथ की हर गाड़ी छूटी मैं दौड़ा पीछे पर देर हुआ।

जीवन के हर बंद डगर पर दौड़ता मैं प्रतिपल हूँ
हर पग हर पथ हर पल बस हारा मैं इंसान वही असफ़ल हूँ।

बागों की वसंत ना मेरी वो खिले पुष्प की महक कहाँ
पतझड़ का मैं सुख पत्ता उड़ता धूल संग यहाँ वहाँ।
गिरे सूखे पत्तों की भला कभी वजूद कहीं होती है!
आँधियों की कपट चाल में फंस वो, तक़दीर पर अपनी रोती है।
शायद मेरी मंजिल ही नही बस चल रहा हूँ रात और दिन
मार्ग भी सब टेढ़े मेढ़े है बिन मंजिल मैं लक्ष्यहीन।

संग साथी संबंधी बढ़ गए मैं खड़ा आज भी वही विफल हूँ
हर पग हर पथ हर पल बस हारा मैं इंसान वही असफ़ल हूँ।

बढ़ने वाले हर एक शख्श का सम्मान हृदय से करता हूँ
तुच्छ भला कोई वजूद न मेरा पर बदनामी से डरता हूँ।
कारखानों की भट्ठी में इस्पात नही मैं गला गया
नगरसेठ ठेकेदारों से हर बार ये मानुष छला गया।
असफलताओं की नित प्रहार से घायल मैं बारम्बार हुआ
तेरे लिए चमकती दुनिया और अँधियारा मेरा संसार हुआ।

शहर की भीड़ में ठोकरे खाता फिरता मैं आजकल हूँ
हर पग हर पथ हर पल बस हारा मैं इंसान वही असफ़ल हूँ।

आँखों मे जो सपने थे मेरे सपना अब वो टूट चुका है
मंजिल कहीं नज़र ना आती शायद मुझसे रुठ चुका है।
मेरे और मंजिल के बीच में धुंध घनी गहरी है छाई
डर-डर अब मैं पग रखता हूँ धुंध के पीछे मंजिल या खाई!
अब सपनों में भी वो जान नही जीवन क्या! खुद की पहचान नही
चल रहा हूँ बेसुध सा अब पर जाना कहाँ ये ज्ञान नही।

नाकारों की भरी झुंड में मैं एक झुका हुआ शकल हूँ
हर पग हर पथ हर पल बस हारा मैं इंसान वही असफ़ल हूँ।

Comments

  1. Nice , bahut achaa,but niras Mt hona kabhi

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  2. Dil chu liya bhaiya apka kavita sach me. I salute you big bro 🙋‍♂️

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  3. इस कविता में सब की पीड़ा समाहित है।
    अभी सभी जीवन संघर्षरत है लेकिन इससे हार मानना उचित नही है।

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