दतैया संग झगरा
एक दिन नहानी के कपाट ल लकर धकर मैं खोलेंव
देख दतैया के छत्ता भीतरी गरज के फेर मैं बोलेव
कस रे डिंगहा पियंर दतैया खलखला के तैं चबैया
एत्तेक बड़ बड़ घर दुवार हे
ब्यारा बखरी अउ कोठार हे
तरिया डबरी रुख राई हे
नदिया नरवा ऊंच खाई हे
बाग बगीचा कौहा पेड़ हे
आमा अमली मउहा पेड़ हे
डोली खाल्हे नदियां के दाहरा
नदियां के उप्पर बड़का बाहरा
भर्री मटासी कन्हार मा रुख हे
अउ तोला फ़क़त अपन छत्ता के दुख हे!
एत्तेक ठउर ठिकाना ला छोड़के अतेक दुरिहा आथस तैं
अउ छत्ता अपन बनाए बर फ़क़त घर कुरिया ला पाथस तैं
लोग लइका सियान सामरत अउ बहु बेटी के घर मा
नहानी छोड़के बाहिर मा करत हे पिसाब पानी तोर डर मा
घर के बाहिर गंदगी फैलही ए बात के तोला मलाल नइये
रोग राई मा मनखे मरही एकरो जरा से भी खयाल नइये
देख रे दतैया हम मनखे आन सभ्य समाज के रहवैय्या
तोर असन नही कोनो ला घर मा खुसर के चबैया
स्वच्छ भारत के मिशन चलाथन
घुरवा मा खुसर के फोटू खिचाथन
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कही के
पोंगा मा नींग के हम नारियाथन
खैर......छोड़ ये सब बात ला......
तुम का जानहु ज्ञान विज्ञान अउ देश दुनिया मुलाकात ला
कान खोल के सुन ले अब तैं प्रेम से झट मोर बात ला
जइसने आहव वइसने निकल जाओ
कहीं नई करौ गऊ माफ कर दुहुँ
अउ करहु कोनो उनुन भुनून
त स्वच्छ भारत के तहत साफ कर दुहुँ।
सुन दतैया फेर जम्मो बात ला हाथ रमंज के बोले...
पाखंडी नीच पापी दोगला
मनखे अस तै आज के
सरी करम ला कर के निर्लज्ज
शरम के ना लाज के
कदे खेत मा पेड़ बचा हस
कदे खार मा रुख हे?
जम्मो धरती खा ढकारबे
फेर अघाए नही ऐसे तोर भूख हे
झिल्ली प्लास्टिक मा भूईंया सरगे
नदियां नरवा सुख्खा परगे
आमा अमली सब बिसरगे
बाग बगीचा घलो उजरगे
बात करथस तैं कौहा रुख के
दारू पियत हस मउहा रुख के
बाहरा भर्री मटासी कन्हार
रसायन डार सब करे बेकार
संझा बिहिनिया पहर ला खात हस
ज़हर ला बोवत हस ज़हर ला खात हस
धरती के छाती ला बेधा कर देस
ओजोन परत ला छेदा कर देस
गंगा ला गंदा नाली कर देस
धरती के कोख ला खाली कर देस
कोरोनो डेंगू तोला निगलगे
तोरे कारण ग्लेशियर पिघलगे
वाह रे सभ्य समाज के मनखे
लोग लइका बर नज़र गड़ात हस
हवस अपन तैं पूरा करे बर
बेटी बचात हस बेटी पढ़ात हस
ठुठी बाहरी मा सड़क बाहर के
आज बड़ा तैं चोचला करत हस
भर के नोट तैं अपन खिसा में
स्वच्छ भारत के ढकोसला करत हस
तोर घर कुरिया तोर लोग लइका
अउ तोर मया के मोल हे
त हमरो जिनगी हमरो समाज
अउ हमरो लइका अनमोल हे
घर हमर उजार के रे पापी
घर ला अपन बसा डारे
खेतखार ला पाट के बड़का
महल अपन तैं टेका डारे
बेरा रहिते जाग जा कपटी
पेड़ लगा अउ जल बचा ले
अपन नही ते अपन लइका के
बचपन अउ सुखद कल बचा ले
तोर गलती बर सुन रे मनखे
उप्पर वाला के फाइन लगही
मसान घाट के टोकन कटा के
मुर्दा अब तोर लाइन लगही
झन तैं लाग रे हमर ले मनखे
गर मन मा बात कोनो ठन जाहि
अउ नाक मा बैठगे कोनो मंचलहा दतैया
त दु ठन नाक फेर बन जाहि।
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